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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन

 

जैमिनि बोले- श्रेष्ठ पक्षिगण! आपने प्रवृत्ति और निवृत्ति - दो प्रकार के वैदिक कर्म बतलाते हुए मुझे बहुत सुन्दर उपदेश दिया है। अहो! पिताकी कृपासे आपलोगों का ज्ञान ऐसा है, जिससे तिर्यग्योनि को प्राप्त होकर भी आपने मोहका त्याग कर दिया। आपलोग धन्य हैं; क्योंकि उत्तम सिद्धिकी प्राप्तिके लिये आपलोगोंका मन आज भी पूर्वावस्थामें ही स्थित है। विषयजनित मोह उसे विचलित नहीं कर पाते। मेरा बड़ा भाग्य है कि महर्षि मार्कण्डेयजीने मुझे आपलोगोंका परिचय दिया। आप सब प्रकारके संदेहोंका निराकरण करनेमें सबसे श्रेष्ठ हैं। इस अत्यन्त सङ्कटपूर्ण संसारमें भटकते हुए मनुष्योंको बिना तपस्या किये आप-जैसे सन्तोंका सङ्ग प्राप्त होना दुर्लभ है। मैं तो ऐसा समझता हूँ कि प्रवृत्ति, निवृत्ति एवं ज्ञानके विषयमें आपलोगोंकी बुद्धि जैसी निर्मल है, वैसी दूसरे किसीकी नहीं है। यदि आपका मुझपर अनुग्रह है तो मेरे लिये आगे बतायी जानेवाली बातोंका पूर्णरूपसे वर्णन करनेकी कृपा कीजिये।

यह स्थावर-जङ्गम जगत् कैसे उत्पन्न हुआ? कल्पान्तमें पुन: किस प्रकार यह लयको प्राप्त होगा? देवता, ऋषि, पितर और भूत आदिके वंश कैसे हुए? मन्वन्तर किस प्रकार होते हैं ? उनके वंशमें उत्पन्न महापुरुषों के जीवन-चरित्र कैसे हैं? जितनी सृष्टि, जितने प्रलय, जैसे-जैसे कल्पों के विभाग, जो-जो मन्वन्तर की स्थिति, जैसी पृथ्वी की स्थिति, जितना बड़ा पृथ्वी का विस्तार तथा समुद्र, पर्वत, नदी, वन, भूर्लोक आदि, स्वर्लोक समुदाय और पातालकी जिस प्रकारकी स्थिति है, वह सब मुझे बताइये। सूर्य, चन्द्रमा आदि ग्रह, नक्षत्र और तारोंकी गति तथा प्रलयकालतक की सारी बातें मैं सुनना चाहता हूँ। जब इस जगत् का संहार हो जायगा, तब उसके बाद क्या शेष रहेगा? इस प्रश्नपर भी प्रकाश डालिये।

पक्षियोंने कहा- मुनिश्रेष्ठ! आपने हमलोगोंपर प्रश्नोंका ऐसा भार रख दिया, जिसकी कहीं तुलना नहीं है। अब हम आपके पूछे हुए विषयोंका वर्णन करते हैं, सुनिये। पूर्वकालमें मार्कण्डेयजीने ब्राह्मणकुमार क्रौष्टुकिसे, जो परम बुद्धिमान्, व्रतस्नात तथा शान्त स्वभाववाले थे, जो कुछ कहा था, वही हम आपसे कहते हैं। एक समय महात्मा मार्कण्डेय मुनि श्रेष्ठ ब्राह्मणों से घिरे बैठे थे। वहाँ क्रौष्टुकिने यही बात पूछी थी, जिसे आपने हमसे पूछा है। भृगुनन्दन मार्कण्डेयजीने बड़ी प्रसन्नताके साथ क्रौष्टुकिके प्रश्नोंका उत्तर दिया। उसीका हम आपसे वर्णन करते हैं। आप ध्यान देकर सुनें। जो सृष्टिके समय ब्रह्मा, पालन-कालमें विष्णु तथा संहारके समय जगत् का अन्त करनेवाले अत्यन्त भयङ्कर रुद्र हैं, उन सम्पूर्ण जगत् के स्वामी पद्मयोनि पितामह ब्रह्माजीको मैं प्रणाम करता हूँ। मार्कण्डेयजीने कहा- पूर्वकालमें अव्यक्तजन्मा ब्रह्माजीके प्रकट होते ही उनके मुखोंसे क्रमश: पुराण और वेद प्रकट हुए, फिर महर्षियोंने पुराणकी बहुत-सी संहिताएँ रची और वेदोंके भी सहस्रों विभाग किये। धर्म, ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्य-ये चारों महात्मा ब्रह्माजीके उपदेश बिना नहीं सिद्ध हो सकते थे। ब्रह्माजीके मानस पुत्र सप्तर्षियोंने उनसे वेदोंको ग्रहण किया और ब्रह्माजीके मनसे उत्पन्न हुए भृगु आदि ऋषियोंने पुराणको अपनाया। भृगुसे च्यवनने और च्यवनसे ब्रह्मर्षियोंने उसे प्राप्त किया। फिर उन्होंने दक्षको उपदेश दिया और दक्षने मुझे इस पुराणको सुनाया था। वही आज मैं तुमसे कहता हूँ। यह पुराण कलियुगके समस्त पापोंका नाश करनेवाला है।

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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